चरक संहिता

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चरक संहिता के अनुसार ब्रम्‍हा जी नें आयुर्वेद का ज्ञान दक्ष प्रजापति को दिया, दक्ष प्रजापति नें यह ज्ञान अश्विनी कुमारों को दिया, अश्‍वनी कुमारों नें यह ज्ञान इन्‍द्र को दिया, इन्‍द्र नें यह ज्ञान भारदृवाज को दिया, भारदृवाज नें यह ज्ञान आत्रेय पुर्नवसु को दिया, आत्रेय पुर्नवसु नें यह ज्ञान अग्नि वेश, जतूकर्ण, भेल, पराशर, हरीत, क्षारपाणि को दिया /

सुश्रुत संहिता के अनुसार ब्रम्‍हा जी नें आयुर्वेद का ज्ञान दक्षप्रजापति को दिया, दक्ष प्रजापति नें यह ज्ञान अश्‍वनीं कुमार को दिया, अश्‍वनी कुमार से यह ज्ञान धन्‍वन्‍तरि को दिया, धन्‍वन्‍तरि नें यह ज्ञान औपधेनव और वैतरण और औरभ और पौष्‍कलावत और करवीर्य और गोपुर रक्षित और सुश्रुत को दिया ।

सृष्टि के प्रणेता ब्रह्मा द्वारा एक लाख सूत्रों में आयुर्वेद का वर्णन किया गया और इस ज्ञान को दक्ष प्रजापति द्वारा ग्रहण किया गया तत्पश्चात् दक्ष प्रजापति से यह ज्ञान सूर्यपुत्र अश्विन कुमारों को और अश्विन कुमारों से स्वर्गाधिपति इन्द्र को प्राप्त हुआ। आयुर्वेद के इतिहास से यह ज्ञात होता है कि इन्द्र के द्वारा यह ज्ञान पुनर्वसु आत्रेय को यह प्राप्त हुआ। शल्य शास्त्र के रुप में यह ज्ञान आदि धन्वन्तरि को प्राप्त हुआ। और स्त्री एवं बाल चिकित्सा के रुप में यह ज्ञान इन्द्र से महर्षि कश्यप को दिया गया। उपरोक्त वर्णन से यह ज्ञात होता है कि भारत में प्रारंभ से ही चिकित्सा ज्ञान, काय चिकित्सा, शल्यचिकित्सा, स्त्री एवं बालरोग चिकित्सा रुप में विख्यात हुआ था। उपरोक्त इस विशेष कथन से यह बात भी प्रमाणित होती है कि चिकित्सा कार्य को करने के लिए आज की राज आज्ञा के अनुरुप चिकित्सा कार्य करने के लिए स्वर्गाधिपति इन्द्र से अनुमति प्राप्त करनी आवश्यक होती थी।